फिर मीर जाफ़र २१५ करोड़ रुपए नादिरशाह को नज़र करके अपनी नवाबी कायम रक्खी । सफदरजंग ही को पहली बार दिल्ली सम्राट ने साम्राज्य के वज़ीर की पदवी प्रदान की और तभी सं अवध के नवाव 'नवाब वज़ीर' कहलाने लगे। शुजाउद्दौला सफदरजंग का बेटा था। निस्सन्देह नवाब शुजाउद्दौला ने अंगरेज़ों का खासा मुकावला किया और इसमें भी सन्देह नहीं कि यदि स्वयं शाह आलम और उसके अन्य साथी अंगरेजों के हाथों मे न खेल जाते, तो बक्सर के मैदान में ही शुजाउद्दौला अंगरेजों की उभरती हुई ताकत को सदा के लिए अन्त कर देता। शाह आलम की अयोग्यता ने शुजाउद्दौला को पंगुल कर दिया। किन्तु शुजाउद्दौला के बाद से सन् १८५६ तक अंगरेज़ कम्पनी और भारतीय नरेशों के परस्पर संग्रामों में भारतवासियों को अवध के नवाबों से कभी विशेष फायदा नहीं पहुँचा। इसके विपरीत ब्रिटिश सत्ता के कायम करने में अवध के निर्वल मवाब अकसर, कम्पनी की साजिशों में एक उपयोगी साधन साबित हुए। कम्पनी की भारतीय सेना के अधि- कांश सिपाही सदा अवध से ही आते रहे और कम्पनी के अफसरों को जब जब रुपए की ज़रूरत पड़ी, तो डर कर या मूर्खतावश, उन्हें धन देने में अवध के खजाने ने सदा कामधेनु का काम दिया। ___ मीर जाफर को भी अंगरेजों ने अपनी महत्त्वाकांक्षा की शिखर ...._ तक पहुंचन के लिए बतौर एक सीढ़ी के इस्तेमाल " किया और ज्योंही वे ऊपर तक पहुँच गए उन्होंने विना सङ्कोच उसे लात मार कर अलग फरक अन्त
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मीर जाफर की मृत्यु के बाद