पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४७५

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मीर जाफर की मृत्यु के बाद

फिर मीर जाफर इलाहावाद का रास्ता लेना पड़ा । वास्तव में बिना रिशवत, दगा या इसी तरह के दूसरे उपायों के अंगरेजों ने कभी कहीं किसी एक लड़ाई में भी किसी भारतीय सेना के ऊपर विजय प्राप्त नहीं की। इलाहाबाद के किले की संरक्षक सेना ने भी अंगरेजी सेना का ख़ासा मुकावला किया। किन्तु अंगरेजों के सौभाग्य से वही नजफ़ ख़ाँ जिसने ऊदवानाला अंगरेजों का क़ब्ज़ा " पर अंगरेजों को बुरी तरह दिक़ किया था और जो बहुत अरसे तक इलाहाबाद के किले में रह चुका था और उसके रहस्यों से परिचित था, इस मौके पर अंगरेजो से मिल गया ! किले की दीवारों को गिराने के लिए अंगरेजी सेना के पास इस समय जो एक सबसे अच्छो तोप थी वह हिन्दोस्तान ही की बनी हुई थी और शुजाउद्दौला के खेमों की लूट में उन्हें मिली थी। नजफ़ ख़ाँ ने अंगरेज़ों को किले के सब गुप्त रास्ते बतला दिए और इस तोप ने भी उन्हें ख़ासी मद् दी । अन्त में थोड़ी सी लड़ाई के बाद अंगरेजी सेना ने इलाहाबाद के किले में प्रवेश किया। किले पर हमला करने और भीतर बालों से शर्ते तय करने में महाराजा शितावराय की फ़ौज आगे थी, किन्तु कज़ा करते समय कम्पनी की अपनी सेना आगे थी। शुजाउद्दौला अब भाग कर वरेली पहुँचा। यहाँ से लोट कर कम्पनी और नवाब मलहरराव होलकर की कुछ मराठा सेना की शुजाउद्दौला में सहायता से उसने कड़ा में अंगरेजी सेना पर संधि फिर हमला किया। एक दो छोटी मोटी लड़ाइयाँ