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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज किलदार था। वह गलामहुसेन की बातों में भा गया। उसने अपनी शत पेश की। अंगरेजों ने उसकी शर्दै मञ्जर करली और चुपचाप उसकी मदद से किले पर कब्जा कर लिया। बाद में अगरेजों ने राजा साहूमल के साथ एक भी शर्त का पालन नहीं किया। राजा साहूमल ने गलामहुसेन से शिकायत की, किन्तु व्यर्थी यह भी कहा जाता है कि इस समय मीर कासिम के साथ शुजाउद्दौला का व्यवहार जैसा चाहिएं वैसा न रहा था। १५ सितम्बर सन् १७६४ को बक्सर में दोनों ओर की सेनाओं में संग्राम हुआ । शाहआलम के दिल और दिमाग अक्सर का मशहूर पर अंगरेजों की चालों का काफी असर हो चुका लड़ाई था। "सीअरुल-मुताख़रीन" का रचयिता, जो इस काम में अंगरेजों का खास मददगार था, लिखता है:- "किन्तु शाहमालम ने जो भीतर से वज़ीर (शुजाउद्दौला) से असन्तुष्ट था x x x कई तरह के बहाने करके समय टालना उचित समझा । वजह यह थी कि वह कुछ पहले ही से अंगरेजों से मिल जाने की तदबीर सोच चुका था। अंगरेज़ क़ौम इस विषय का कुछ सन्देशा उसके पास भेज चुकी थी, जिससे वह उनसे मिल जाने का इच्छुक हो गया था और उनकी सहायता से लाभ उठाने का भी निश्चय कर चुका था ।" जव कि स्वयं भारत सम्राट की यह हालत थी तो न जाने उस दिन और कितने भारतीय सेनानियों ने सक्रिय या निष्क्रिय रूप शत्रु का साथ दिया होगा। नतीजा यह हुआ कि दिन भर घमासान में करीब पाँच छ हज़ार श्रादमी काम आए और असहा