पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४७

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लेखक की कठिनाइयां

लेखक की कठिनाइयां हमलों से अपनी रक्षा नहीं कर सका और एक दूसरे के बाद लगातार मुखतलिफ़ विदेशी शासनों का शिकार होता रहा है । कहा जाता है कि इस तरह के विदेशी हमलों में भारत के ऊपर सबसे अधिक भयङ्कर हमला मुसलमानों का था। भारत के मुसलमान आक्रमक असभ्य, धर्मान्ध और अन्यायी थे, जिन्होंने अंगरेज़ों के आने से पहले करीब एक हजार साल तक भारतवर्ष को अपने अत्याचारों से कुचले रक्खा; प्राचीन हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति का सत्यानाश कर डाला और हमारे करोड़ों देशवासियों को तलवार के ज़ोर से धर्मभ्रष्ट कर मुसलमान बना लिया। हमसे कहा जाता गये हैं, उनकी जीविका का प्रबन्ध कर दिया जाय । इस दूत को एक भी इस तरह का बालक नही मिल सका । जिन दिनो मैं इतालिया सरकार का प्रधान मन्त्री था, मैंने और मिस्टर लायड जार्ज ने मिल कर इन भीषण इलज़ामो की सत्यता का पता लगाने के लिए विस्तृत छान बीन की। इनमें से कम से कम कई इलज़ामो के साथ मनुष्यों और स्थानों के नाम तक हमें बनाये गये थे। किन्तु हमारे छान बीन करने पर ये नमाम किस्से झूठे निकले ।"-"विशाल भारत" अगस्त १६२८ । ___एक दूसरी बात यह भी कही गई थी कि जरमनी में एक कारखाना खुला है, जिसमें सिपाहियों की लाशों को उबाल कर उनसे साबुन और ग्लिसरीन बनाया जाता है । इस कारखाने के फोटो तक अंगरेजी अखबारों में छपे थे। "सन् १९२५ में जाकर इस असत्य समाचार की पोल खुली । जरमन सरकार ने एलान किया कि यह एक विलकुल झूठा कित्सा है और इसमें सच का नामनिशान तक नहीं । अाखिर इगलिस्तान के वैदेशिक विभाग के मन्त्री सर आस्टिन चैम्बरलेन को जरमनी का यह कथन स्वीकार