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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज जब इस पत्र का कोई सन्तोषजनक उत्तर न मिला तो शुजाउद्दौला ले सन्नाट और मोर कासिम के साथ आकर अपनी फौज से पटने को घेर लिया। बंगाल के अंगरेज़ इस समय जबरदस्त संकट में थे, किन्तु उनकी पुरानी कूटनीति ने इस अवसर पर भी सन्नाट को शुजा- उनका पूरा साथ दिया। सबसे पहले उन्होंने उद्दौला से फोड़ने

  • सम्राट और शुजाउद्दौला को एक दूसरे से फोड़ने

की कोशिश की कोशिश की । “सीअरुल मुताख़रीन" का विद्वान लेखक सय्यद गुलामहुसेन, जो अपने पिता के साथ इस अवसर पर सम्राट की सेना में मौजूद था, अपनी पुस्तक में स्वीकार करता है कि लोभवश वह खुद इस समय अंगरेजों से मिल गया। उसी की मारफत अंगरेज़ों ने शाहआलम को विश्वास दिलाया कि हम आपके सच्चे "वफादार और खैरखाह” हैं। उन्होंने सम्राट से यह वादा किया कि हम शुजाउद्दौला को ज़ेर करके उसका सारा सूबा आपके हाथों में दे देंगे। सम्राट शाहआलम को इस समय दिल्ली में अपने विपक्षियों के विरुद्ध चारों ओर से मदद की ज़रूरत थी और उसकी इस कमज़ोरी तथा अदूरदर्शिता से अंगरेज़ों को अपनी कूटनीति के लिए काफी मदद मिली। भारत सम्राट का इस समय का भोलापन भी दर्दनाक और हैरतअंगेज़ था। अंगरेजों ने अपनी चालों द्वारा सम्राट को अपने पक्ष में तो नहीं कर लिया किन्तु संग्राम से उदासीन अवश्य कर दिया। एक दूसरा विश्वासघातक महाराजा शिताबराय का बेटा महा-