पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४६३

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२०३
फिर मीर जा़फर

फिर मीर जाफ़र २०३ बुन्देलखण्ड पर चढ़ाई की और शीघ्र ही वहाँ के राजा को अधीन कर लिया । राजा ने तमाम पिछला खिराज अदा करने का वादा किया। मीर कासिम इलाहाबाद लौट आया। सम्राट और उसका वजीर मीर कासिम की इस सेवा से इतने खुश हुए कि उन्होंने तुरन्त अंगरेजों के विरुद्ध बंगाल पर चढ़ाई करने की तैयारी शुरू कर दी। सम्राट की इस चढ़ाई का स्पष्ट उद्देश मीर कासिम को फिर से मसनद पर बैठाना था। किन्तु चढ़ाई करने पहले अंगरेजों को इसकी सूचना देना और उनसे जवाब तलब करना जरूरी था। अंगरजा क नाम नवाब वजीर शुजाउद्दौला ने इस समय सम्राट शुजाउद्दौला का की ओर से नीचे लिखा पत्र अंगरेज गवरनर और उसकी कौन्सिल के नाम कलकत्ते भेजा:- "हिन्दोस्तान के पिछले बादशाहों ने अंगरेज़ कम्पनी को महसूल माफ़ कर दिया, उन्हें बहुत सी बस्तियों और कोठियाँ अता की और उनके तमाम कारबार में मदद की । इस तरह उन्होंने कम्पनी पर इतनी मेहरबानियों की हैं और उसकी इतनी इज़्ज़त बढ़ाई है, जितनी न अपने मुल्क के व्यापारियों के साथ की और न किसी दूसरी यूरोपियन क़ौम के साथ । इसके अलावा हाल ही में बादशाह ने मेहरबानी करके मुनासिब से ज़्यादा ख़िताब और रुतबे और उसके बाद जागीरे और दूसरी रिवायते श्राप लोगों को अत्ता की हैं। बावजूद इन सब इनायतों के आप लोगों ने बादशाह के मुल्क मे दखल दिया, बर्धमान, चट्टग्राम वगैरह सरकारी इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया और बिना दरबार की रजामन्दी के जिस नवाब को चाहा मसनद से उतार दिया