२०२ भारत में अंगरेजी राज मीर जाफर ने प्रार्थना की कि मेरी ये शिकायतें दूर की जावें, किन्तु कलकत्ते की अंगरेज़ कौन्सिल ने इस ओर तनिक भी ध्यान न दिया। उधर मीर कासिम का साहस अभी तक टूटा न था। अपनी सरहद से बाहर निकल कर वह इन विदेशियों मीर कासिम के केबल को तोडने के अन्तिम प्रयत्न कर रहा अन्तम अवज था। सवेदारी की सनद मीर कासिम को सम्राट को श्रोर से बाजाब्ता अता हो चुकी थी और मीर जाफ़र को बिना सम्राट की इजाजत जबरदस्ती अंगरेजों ने सूबेदार बना दिया था। सम्राट शाहआलम अभी तक फाफामऊ ( इलाहाबाद ) में था। अवध का नवाब शुजाउद्दौला इस समय मुगल साम्राज्य का प्रधान मंत्री और सम्राट का विशेष संरक्षक था । मीर कासिम ने सम्राट और शुजाउद्दौला दोनों से मिलकर अंगरेजों और वंगाल का सब हाल कह सुनाया । शुजाउद्दौला की माँ को उसने माँ और शुजाउद्दौला को अपना भाई कह कर सम्बोधन किया। शुजाउद्दौला ने कुरान हाथ में लेकर अंगरेजों को सजा देने और भीर कासिम को फिर से मुर्शिदाबाद की मसनद पर बैठाने की कसम खाई। बुन्देलखण्ड का राजा इधर कई वर्ष से विद्रोह कर रहा था। उसने दिल्ली दबार को खिराज भेजना बन्द कर दिया था। शुजाउद्दौला सम्राट की ओर से उस पर चढ़ाई की तैयारी कर रहा था। मीर कासिम ने इस मौके को गनीमत समझा, सम्राट और शुजाउद्दौला से इजाजत लेकर अपनी सेना और तोपखाने सहित
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भारत में अंगरेज़ी राज