१६० भारत में अंगरेजी राज अस्तित्व को मिटाकर अनेक बार अपना जुश्रा मुसलमान कौमो के कन्धो पर रक्खा है । ईसाइयों और मुसलमानों के इस लदियों के विरोध के अलावा भी यूरोपियनों का खास कर किसी यूरोपियन कौम के विरुद्ध अपने किसी एशियाई स्वामी के साथ वफादारी कर सकना करीब करीव नामुमकिन है। इस सच्चाई को न समझ सकना अनेक भारतीय और अन्य एशियाई शासकों के लिए घातक साबित हुआ है। कलकत्ते में इस समय आरमीनिया का एक मशहूर ईसाई सौदागर खोजा पेतरूस रहता था। इस सौदागर का एक भाई खोजा निगरी मीर कासिम की सेना में एक अफसर था और भी कई आरमोनियन ईसाई मीर कासिम की सेना में नौकर थे। मेजर एडम्स ने खोजा पेतरूस की मारफत गुप्त पत्र व्यवहार द्वारा इन सब लोगों को अपनी ओर फोड़ लिया। इनके अलावा मीर कासिम की सेना में एक अंगरेज़ सिपाही भी था, जो कुछ समय पहले अंगरेजी सेना को एक अंगरेज़ छोडकर नवाब के यहाँ भरती हो गया था। इस विश्वासघातक अंगरेज को अपनी सेना में भरती कर लेना मीर कासिम के नाश का सबसे बड़ा सबब साबित हुआ। उसने मिरज़ा नजफ़ खाँ के आने जाने के मार्ग को धीरे धीरे अच्छी तरह देख लिया और एक दिन, जब कि मालूम होता है दुर्ग के भीतर के अन्य ईसाई और गैर ईसाई विश्वासघातकों के साथ सारी योजना पक्की की जा चुकी थी, ४ सितम्बर की रात को करीब दस बजे
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भारत में अंगरेज़ी राज