मीर कासिम १-७ सं उतारने या दूसरा सूबेदार नियुक्त करने का अधिकार कमी किसी ने न दिया था। मीर जाफर के साथ जो नई सन्धि इस अवसर पर की गई उसका जिक्र अगले अध्याय में किया जायगा। कम्पनी को सेना मेजर एडम्स के अधीन ५ जुलाई को यानी __युद्ध के एलान से दो दिन पहले कलकत्ते से कई छोटी छोटो ___मुर्शिदाबाद की ओर रवाना हुई। मीर कासिम लड़ाइयों की सेना सिपहसालार मोहम्मद तकी खाँ के अधीन मुंगेर से चली 1 तकी स्वाँ वोर और योग्य सेनापति था, किन्तु उसकी तमाम तजवीज़ों में बात बात में मुर्शिदाबाद का नायब नाज़िम सय्यद मोहम्मद खाँ, जो अंगरेज़ो से मिला हुअा था, रुकावटें डालता रहता था। तकी खाँ की सेना के अन्दर भो अंगरेज़ काफ़ी सफलता के साथ विश्वासघात के बीज बो चुके थे। तीन स्थानों पर दोनों ओर की सेनाओं में कई छोटी बड़ी लड़ाइयाँ हुई। इन लड़ाइयों का विस्तृत हाल "सीअरुल-मुताखरीन" नामक अन्य में दिया हुआ है । उस ग्रन्थ में मुसलमान सेना के अन्दर एक खास देशघातक मिरज़ा ईरज खाँ का जिक्र आता है, जिसने भीतर ही भीतर अंगरेजों से मिलकर मीर कासिम और मोहम्मद तक़ी खाँ के साथ दगा की। करीब दो सौ यूरोपियन और अन्य ईसाई, जो नवाब की सेना में ख़ासकर तोपखाने में नौकर थे, ऐन मौके पर शत्रु की ओर जा मिले । इन लड़ाइयों में से एक में मोहम्मद तकी खाँ मार डाला गया। इन्हीं लड़ाइयों के
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मीर का़सिम