पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४३७

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मीर का़सिम

मीर कासिम १७६ हज़ारों हिन्दोस्तानी व्यापारियों को इस एलान से लाभ हुआ। वे अंगरेजों से कम खर्च में जिन्दगी बसर कर बंगाल में फिर से __सकते थे और अपना माल सस्ता वेचकर भी .खुशहाली लाभ कमा सकते थे। तिजारत का दरवाजा एक बार फिर बिल्कुल खुल गया. फिर चारों ओर से आ आकर बंगाल में व्यापारियों की संख्या बढ़ने लगी और देश की तिजारत और कृषि दोनों फिर जोरों के साथ उन्नति करने लगीं। अंगरेजों को यह कब गवारा हो सकता था। फौरन कलकत्ते में फिर कौन्सिल का इजलास हुश्रा ! नय हुआ कि नवाब की नई आज्ञा नाजायज है और नवाब को मजबूर किया जाय कि अपनी इस श्राशा को वापस लेकर देशी व्यापारियों से पहले की तरह महसूल वसूल करे। ऐमयाट और हे नाम के दो अंगरेज मुंगेर जाकर नवाव से मिलने और सब बातें नए सिरे से तय करने के लिए नियुक्त हुए। बंगाल की प्रजा के साथ अत्याचारों और बंगाल के शासक के साथ जबरदस्तियों का प्याला अव लबालब दूसरा सूबेदार खडा . 'भर चुका था। मीर कासिम को यह भी मालूम करने की तजवीज़ " था कि बंगाल के तीनों प्रान्तों की दीवानी के अधिकार प्राप्त करने के लिए दिल्ली सम्राट के साथ अंगरेजों का गुप्त पत्र व्यवहार वराबर जारी है। मीर कासिम और वन्लीटॉर्ट के दरमियान इस समय जो पत्र व्यवहार हुआ वह पढ़ने के योग्य है। मीर कासिम ने वार बार अपने कर्मचारियों और अपनी प्रजा के पर अंगरेजों के अत्याचारों की शिकायतें की। अत्यन्त दर्द भरे