मीर कासिम १६७ साल के बारे में अंगरेजों ने किया। मीर कासिम ने तीनों प्रान्तों की आमदनी में से २४ लाख रुपए सालाना दिल्ली सम्राट की सेवा में भेजने का वचन दिया। सम्राट ने मार्च सन् १७६१ में तीनों प्रान्तों की सूबेदारी का परवाना बाजाब्ता मीर कासिम के नाम जारी कर दिया। अंगरेजो का असली मतलब पूरा हो गया। उन्होंने इस अवसर पर एक कोशिश यह भी की कि जिस तरह मीर कासिम को शाही परवाना अता हुश्रा, उसी तरह जो इलाके अंगरेज़ कम्पनी के पास थे उनके लिए कम्पनी को अलग सूबेदारी का परवाना मिल जावे ; किन्तु शाहबालम ने इसे मंजर न किया। एक और प्रार्थना इस समय अंगरेजो ने शाहबालम से यह की कि सूबेदार मीर कासिम को रहले दिया जावे, किन्तु नोनों प्रान्तों की दीवानी के अधिकार सूबेदार से लेकर कम्पनी को दे दिए, जावें। इस दीवानी का मतलब यह था कि अंगरेज सूबेदार के मातहत __ तीनो प्रान्तों में सरकारी मालगुजारी वसूल करकं उसका हिसाब सम्राट और सूबेदार दोनों को दे द और वसूली का खर्च निकाल कर वाकी सब रुपया सूबेदार के सुपुर्द कर दें। इस धन से मरकारी फौजे रखना, अपने प्रान्तों के शासन का वाकी सारा काम चलाना और सम्राट को सालाना खिगज भेजना सूबेदार का काम रह जाय। शाहआलम इस समय दिल्ली लौटने के लिए उत्सुक था । राज- धानो के अन्दर सिंहासन के लिए किसी दूसरे हकदार के खड़े हो जाने का भी डर था। सम्राट ने चाहा कि अंगरेज़ अपनी सेना
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मीर का़सिम