मीर कासिम यह घटना ६ जनवरी सन् १७६१ ई० की पानीपन की तीसरी लड़ाई थी। भारत का राजशासन उस समय खासी बिगड़ी हुई हालत में था। औरंगजेब की संकीर्ण नीति और उसके मुग़ल साम्राज्य का अविश्वासी स्वभाव तथाबाद के दिल्ली के सम्राटों निबलता की विलासप्रियता और अयोग्यता ने मुगल साम्राज्य को अंग भंग और खोखला कर दिया था। अनेक छोटे बड़े नरेशों के अलावा अवध के नवाब और दक्खिन के निज़ाम अपने अपने सूवों के स्वच्छन्द शासक बन बैठे थे । बंगाल अभी तक नाम मात्र को दिल्ली के अधीन था। किन्तु बंगाल से भी दिल्ली खिराज जाला कई साल से बंद हो गया था, जिसकी वजह से शाह आलम दूसरे को बिहार पर चढ़ाई करनी पड़ीथी ! स्वयं राजधानी के पास भरतपुर के जाट राजा और रामपुर के रुहेला नवाव दोनों अपने अपने स्वाधीन राज कायम कर रहे थे। मराठों की शक्ति दिनों दिन बढ़ती जा रही थी। दिल्ली के सम्राट अभी तक भारत के सम्राट कहलाते थे, किन्तु बहुत दर्जे तक केवल नाम के लिए। पच्छिम में सिन्ध और पञ्जाब के सूबे अफगानिस्तान के शासक अहमदशाह अब्दाली के अधीन हो चुके थे और पूरब में बंगाल और बिहार दोनों के अंदर अंगरेजो कीसाजिशें सफल हो रही थीं। वास्तव में सारे भारत पर अपनी हुकूमत जमा लेने के लिए उस समय अफगानों, मराठों और अंगरेजों के बीच एक प्रकार का तिकोनिया संग्राम जारी था, जिसमें अफुगान और मराठे अपने
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मीर का़सिम