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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरजी राज शक्ति दिल्ली के मुगल सम्राट को रही सही शक्ति थी : उपाय केवल यह था कि विदेशियों के मुकाबले के लिए दिल्ली सम्राट के झंडे के नीचं देश की सारी हिन्दू और मुसलमान राज शक्तियों को एकत्रित किया जावे और उनके सम्मिलित प्रयत्नों द्वारा विदेशियों को वंगाल तथा भारत से निकाल कर बाहर कर दिया जाये। यह एक आश्चर्य की बात है कि यह उपाय उस समय उसी राजा नन्दकुमार को सूझा जिसने सन् १७५७ में अमीचन्द के धन के लोभ में आकर अपने स्वामी सिराजुद्दौला, भारतीय प्रजा और फ्रांसीसियों तीनों के साथ विश्वासघात किया था। मालूम होता है नंदकुमार अब अपने देश को अंगरेज़ों के हाथों बिकते हुए देखकर और प्रजा के ऊपर उनके अन्यायों को देखकर अपनी गलती पर पछता रहा था। राजा नंदकुमार ने जी तोड़ प्रयत्न शुरू किए। सम्राट शाह आलम अभी तक विहार में था। सम्राट और मराठों से उसने पत्र व्यवहार शुरू किया। उसकी कोशिशो से मराठों ने मीर कासिम और अंगरेजों दोनों के खिलाफ सम्राट की ओर से बंगाल पर हमला करने का वादा किया। बर्धमान, बीरभूम और अन्य अनेक स्थानों के राजा और जमींदार इस काम के लिए सम्राट के झंडे के नीचे आ ाकर जमा होने लगे। ये सब प्रयत्न अभी चल ही रहे थे, इतने में एक ऐसी घटना हुई जिसका भारत के अंदर ब्रिटिश राज के कायम होने पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा, किन्तु जिसके इस गम्भीर प्रभाव पर भारतीय इतिहास लेखकों ने अभी तक उचित ध्यान नहीं दिया।