मीर कासिम बंगाल और बिहार भर में इस समय कम्पनी की कोठियाँ फैली हुई थीं। नमक से लेकर इमारती लकड़ी तक अनेक चीज़ों का सारा व्यापार अंगरेजों के शिकायतें हाथों में आ गया था। किसानों की खड़ी खेती कम्पनी के अंगरेज़ नौकर जिस भाव चाहे ख़रीद लेते थे। देश के हज़ारों लाखों व्यापारियों की रोज़ी छिन चुकी थी और किसानों की हालत इससे भी अधिक करुणाजनक थी। नवाब के मुलाजिमों के साथ कम्पनी के गुमाश्तों और एजन्टों के रोजाना जगह जगह झगड़े होते रहते थे। कम्पनी के गुमाश्ते अनेक झूडी सच्ची शिकायतें रोजाना कलकत्ते भेजते रहते थे और वहाँ म वही फौजी सिपाही नवाब के मुलाजिमी या स्वाभिमानी प्रजा को दुरुस्त करने के लिए जगह जगह भेज दिए जाते थे। नवाव की सरकारी चौकियों में वंगाल भर के अंदर कहीं पर एक पाई महसूल की वसूली न होती थी। मीर कासिम ने अनेक बार पत्रों द्वारा दर्दनाक शब्दों में गवरनर वन्सीटार्ट से इन तमाम बातों की शिकायत की, किन्तु इन शिकायतों और मीर कासिम के प्रयत्नों का ज़िक्र और आगे चलकर किया जायेगा। इस सब अपमान से बंगाल की सचमुच रक्षा करने और देश को आइन्दा की अाफ़तों से बचाने का केवल राजा नन्दकुमार एक ही तरीका हो सकता था। देश में उस का देशप्रेम समय केवल एक ही शक्ति थी, जिसके अंडे के नीचे और तमाम शक्तियों का मिलना मुमकिन हो सकता था। वह
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मीर का़सिम