२५८ भारत में अंगरेजी राज सन्देह होने लगता है कि उन दिनों बंगाल में किसका गज था ! वास्तव में राज ल मुगल सम्राट का था, न मुर्शिदाबाद के सूवेदार का ; राज था विदेशियों की कूट नीति, अराजकता और इस देश के दुर्भाग्य का, और यह सब नतीजा था थोड़े से भारत- वासियों की लजाजनक देशघातकता का ! हम ऊपर कह चुके है कि वर्धमान, मेदिनीपुर और चट्टग्राम की आमदनी से वे सब फौजें रक्खी गई थीं, जिनके हाथों बंगाल भर में यह भयंकर नादिरशाही चलाई जा रही थी। सच यह है कि इस नादिरशाही कहना भी नादिरशाह के साथ अन्याय करना है। नादिरशाह यदि गैर मुल्क में पहुँच कर अपने सिपाहियों की शान कायम रखने के लिए चन्द घड़ी के लिए कलाम का हुकुम दे सकता था तो वह अपनी एक आवाज़ पर अमन कायम करना भी जानता था और क्षमा और उदारता की शक्ति भी उसमें अपार थी। वास्तव में अठारवीं सदी के उत्तरार्ध में बंगाल के अंदर अंगरेजों के अत्याचारों की तुलना संसार के इतिहास के किसी दूसरे पन्ने पर मिलना कठिन है। - - - - Eends, it was more like robhe1r- than Idri st 1akers spneared EP11 u licre-_ther sold at their own prises, and fotect the people to sell to them at their own prices also it app ared more like at tums going 10 pillage the people under pretene ot coummerce than anything else In man the people - Numeri the protection of thell on toantrs' Courts Tus English, Aru, traders intheir marrh rasaged worse than a !z tarian ( Porqueras rhus this miserable country was torrn to Pres by the burrible tapac10vsness of a double tyranny' --Burke in his armpeashment of Trren Flastings
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भारत में अंगरेज़ी राज