पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४१३

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मीर का़सिम

मीर कासिम १५५ "बिना महसूल दिए तिजारत की जाती थी और उसके जारी रखने में बेहद जल्म किए जाते थे।x x x मीर कासिम के साथ लड़ाई की यही उस समय वजह हुई । कम्पनी के डाइरेक्टरों तक ने फरवरी मन् १७६४ के एक पत्र में स्वीकार किया है कि "कम्पनी के नौकरो, गुमाश्तो, एजन्टों और दूसरो की यह निजी तिजारत नाजायज" थी, "दस्तक का लज्जाजनक दुरुपयोग" थी, "हर तरह से अनधिकार युक्त" थी, और नवाब और उसकी “कुदरती प्रजा" दोनों के साथ यह "दोहरा अन्याय' था। किन्तु डाइरेक्टग के इस पत्र के बाद भी इस अन्याय में कोई कमी न पड़ी। उन सिपाहियों के जरिए, जो नवाव के पैसे से नियुक्त किए गए थे, नवाव ही की प्रजा के ऊपर जिस जिस तरह के जुल्म किए जाते थे उनका कुछ अनुमान मीर कासिम के नाम बाकरगंज के पक मरकारी कर्मचारी के २५ मई सन् १७६२ के पत्र में किया जा सकता है। उसमें लिखा है :-- V itthus tine imum blark_iwe rchitats fortrl it tAPELLAnt te pareline _tlth t imus soung water in the { ompent e r be to us of MON . | dudes thi- Sari aor larssed in UPPreoved the latest sonlentiful Papply - Utrincid from the Souritnat IRRY Or write1 WErrrnt ltd to oped 25, 150 and 2 2001) prr ann Here ttlet m time lien ud Parel simpruours EETI day trademas earrird on Witirout a mout of deather, tin thi Prostration of u hth Infinite oppressron mere ccmmitted Tns H15 the aimerliate cue of the war with fir Cassini '---Jerrst Fem. Bengal po 8 and 6