पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/४०७

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मीर का़सिम

मीर कासिम १४६ कुछ साल पहले कम्पनी का कर्ज चुकाने के लिए मीर जाफर ने वर्धमान के इलाके की मालगुजारी कम्पनी के नाम कर दी थी। उस समय में वर्धमान के अत्याचार र का इलाका अंगरेजों के इन्तज़ाम में था और कम्पनी के सिपाहियों ने, जिनमें अधिकांश मद्रास से लाए गए थे, उस इलाके भर में लूट मार जारी कर रक्खी थी। इन तिलंगे सिपाहियों के अत्याचारों की शिकायत करते हुए सितम्बर सन् १७६० में वर्धमान के जमींदार राजा तिलकचन्द ने कलकत्ते की अंगरेज कमेटो को लिखा :- ___"अनेक तिलंगों ने भण्डलघाट, मानकर, जहानाबाद, चितवर. बरसात, बलगुरी और चोमहन के परगनों और दूसरे स्थानों में घुसकर वहाँ के बाशिंदों को लूट लिया है और उनके साथ इस तरह के जुल्म किए हैं जिन लोगों की जान तक ख़तरे में पड़ गई है। इन जुल्मों से मजबूर होकर वहाँ के बाशिंदे गाँव छोड़ कर भाग गए हैं और उन मौजों की मालगुजारी में दो या तीन लाख रुपए का नुकसान हुआ है।" इस पर भी इन तिलंगों की लूट मार जारी रही और राजा तिलकचन्द को कुछ समय बाद फिर लिखना पड़ा:- "तिलंगों के व्यवहार से रय्यत को ज़बरदस्त कष्ट हो रहा है और मजबूर होकर रय्यत अपने घर बार छोड़ छोड़ कर भाग रही है।* किन्तु कम्पनी ने इन शिकायतों की ओर कुछ भी ध्यान न दिया। लिखा है कि बर्धमान के कई परगने इस समय वीरान पड़े हुए थे।

  • Long's Rearden. 236