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चौथा अध्याय मीर कासिम मुर्शिदाबाद के दरबार और बंगाल की प्रजा दोनों की हालत मीर कासिम के मसनद पर बैठते ही और अधिक शोचनीय होती गई। सव से पहले मीर कासिम हालत सन ने देखा कि राज की आर्थिक अवस्था अत्यन्त बिगड़ी हुई थी। सरकारी मालगुजारी ठीक तौर पर वसूल न हो रही थी। खजाना करीब करीब ख़ाली था। सालाना खर्च प्रामद से बढ़ गया था, और फ़ौज की कई महीने की तनखाहें चढ़ी हुई थीं। इसके अलावा ठीक मीर जाफ़र के समान मीर कासिम ने अब महसूस किया कि जो बड़े बड़े वाद उसने अंगरेजों के साथ कर रक्खे थे उन्हें पूरा करना इतना आसान न था। इन वादों और दूसरी नई नई मांगों को पूरा करने के लिए मीर कासिम ने अपने यहाँ के जमींदारों और रईसों को अंगरेज़ो ही के सिपाहियों की