भारत में अंगरेजी राज मीर कासिम ने शासन का सारा भार अपने ऊपर ले लिया और सेना की पिछली तनखाहों को बनाया अदा करने और सम्राट को बराबर खिराज भेजते रहने का वादा किया। इस तरह २० अक्तूबर को सवेरे मीर जाफर अंगाल की मसनद से अलग किया गया और उसकी जगह मीर कासिमबली खों के नाम की नौबत बजने लगी। ___अंगरेज द्विभाषिया लशिंगटन के अनुसार मीर जाफर ने अन्त में करनल केलो से जो कुछ कहा वह यह था:- "पाप ही लोगों ने मुझे मसनद पर बैठाया था, आप चाहें तो मुझे उतार सकते हैं। आप लोगों ने अपने वादों को तोड़ना मुनासिब समझ्न । मैंने अपने वादे नहीं तोड़े । अगर मेरे दिल में भी इसी तरह की चालें होतो और मैं चाहता तो बीस हजार नौज जमा कर सकता था और आप से लड सकता था। मेरे बेटे मौरन ने मुझे इन सब बातों के बारे में पहले ही से आगाह कर दिया था। बंगाल की इस दूसरी बगावत का यह सारा बयान उस बगावत के कर्ता धर्ता अंगरेजों ही की जवानी दिया गया है। मीर जाफ़र के साथ इस व्यवहार को जायज करार देने के लिए उस पर कुछ न कुछ इलज़ाम लगाना मीर जाफर पर आवश्यक था । १० नवम्बर सन् १७६० को मूठे दोष - कलकत्ते में अंगरेज अफसरों की एक सभा हुई जिसमें कम्पनी के डाइरेक्टरों के नाम मशहूर जालसाज हॉलवेल
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