१३४ भारत में अंगरेजी राज के वादे देकर इस साजिश में शामिल किया जाये और इस समय उन्रले रुपए वसूल कर लिए जावें । मीर कासिम से बात करने के लिए गवरनर वन्लीटार्ट और राजा दुर्लभराम से बात करने के लिए हॉलवेल नियुक्त हुए। उसी रात को अलग अलग वन्सीटार्ट की मीर कासिम से और हॉलबेल की राजा दुर्लभराम से बातचीत हुई । अगले दिन गुप्त सभा में आकर बन्सीटार्ट और हॉलवेल दोनों ने अपनी अपनी सफलता का हाल सुनाया। करीब दस दिन शतों को तय करने इत्यादि में खर्च हुए । इतिहास लेखक मालेसन लिखता है कि २७ सितम्बर को कलकत्ते की अंगरेज़ कौन्सिल और मीर कासिम में एक गुप्त सन्धि हो गई, जिसमें यह तय हुआ कि मीर कासिम को मुर्शिदाबाद दरवार का वज़ीर प्राज़म बना दिया आय, सूबेदारी के तमाम अधिकार मीर कासिम को दिला दिए जावें और मीर जाफर को केवल 'सूवेदार' की सूखी उपाधि और व्यक्तिगत खर्च के लिए एक सालाना रकम बतौर पेन्शन जिन्दगी भर मिलती रहे, अंगरेज़ों और मीर कासिम में स्थाई मित्रता रहे, मीर कासिम को जब ज़रूरत हो अंगरेज़ अपनी सेना से उसकी मदद करें, इसके बदले में मीर कासिम बर्धमान, मेदिनीपुर और चट्टग्राम तीनों ज़िले हमेशा के लिए कम्पनी के नाम कर द, जो जवाहरात मीर जाफर ने कम्पनी के पास गिरवी रक्खे थे उन्हें मीर कासिम नकद रुपया देकर छुड़वा ले, सम्राट शाह आलम के साथ अंगरेज़ या मीर कासिम बिना एक दूसरे ले सलाह किए कोई समझौता न करें, बंगाल, बिहार और उड़ीसा तीनों प्रान्तों
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भारत में अंगरेज़ी राज