१३० भारत में अगरेजी राज गुप्त पत्र व्यवहार शुरू हो गया था। जुलाई में गवरनर बन्सीटार्ट के श्राने पर इस षड्यन्त्र ने शकल ली। हॉलचेल और केल के उस समय के बयानों मे मीरन की मृत्यु का साफ़ इस तरह ज़िक्र आता है, जिससे मालूम होता है कि मीरन की हत्या इसी षड्यन्त्र का एक अंग थी। सितम्बर सन् १७६० में इस षड्यन्त्र को अन्तिम रूप देने के लिए और मीर जाफ़र से छेड़ छाड़ शुरू करने का बहाना ढूंढने के लिए वन्सीटार्ट के सभापतित्व में कलकत्ते में कई गुप्त सभाएँ हुई। ११ मितम्बर की सभा की काररवाई "करनल क्लाइव की क्रांति से आज तक समय समय पर हमारा प्रभाव बढता गया है और उस प्रभाव को कायम रखने कम्पनी की धन और नलिए हमें वैसे वैसे ही अपना सैन्यबल भी बढ़ाना धरती की प्यास ___ पड़ा है । अत्र हमारे पास एक हजार से ऊपर यूरोपियन सिपाही और पाँच हजार हिन्दोस्तानी सिपाही हैं। इनका खर्च और उसके साथ साथ सेना का गैर मामूली खर्च मिलाकर इतना अधिक है कि जो जागीरें हमें मिली हुई हैं उनकी सालाना आमदनी से किसी तरह पूरा नहीं हो सकता।xxx "इसलिए नवाब से कहना चाहिये कि आप इससे कहीं ज्यादा सालाना श्रामदनी कम्पनी के नाम कर दें और इसके पूरे पूरे और ठीक ठीक प्रबन्ध के लिए इस तरह के कुछ जिलों का अनन्य अधिकार कम्पनी को दे दें जिनका हम बहुत आसानी से इन्तजाम कर सकें। x x x हम
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भारत में अंगरेज़ी राज