भारत में अंगरजी राज बंगाल की प्रजा ने अपनी गाढ़ी कमाई के पैसों से संचित ___मुर्शिदाबाद के खजाने को अपनी आँखो के कम्पनी को , सामने दुलदुल कर विदेशियों के हाथों में जाते व्यापार सम्बन्धी ' हुए देखा। आए दिन के संग्रामों और सैन्य ज़्यादती यात्राओं के कारण देश की कृषि पर मिट्टी छित गई थी और उद्योग यन्धों का नाश हो रहा था। इस पर देश के एक एक व्यापार के ऊपर कम्पनी जवरदस्ती अपना अधिकार जमाती जा रही थी। मिसाल के लिए नमक, छालिया, इमारती लकड़ी, तम्बाकू, सूखी मछली इत्यादि का व्यापार देशवासियों को रोज़ी और सूबे- दार की आमदनी दोनों का उन दिनो एक खास ज़रिया था। इसी- लिए इस तरह की कई चीज़ों का व्यापार शुरू से यूरोपनिवासियों के लिए इस देश में बन्द कर दिया गया था। विदेशी व्यापारियों के नाम सम्राट की साफ़ आज्ञाएँ इस विषय में मौजूद थीं। फिर भी प्लासी के फ़ौरन ही बाद अंगरेजों ने ये सब व्यापार ज़बरदस्ती अपने हाथों में ले लिए । मीर जाफर ने मसनद पर बैठने के एक महीने के अन्दर क्लाइव से इस ज़बरदस्ती की शिकायत की। कुछ देर के लिए कुछ रोक थाम का भी ढोंग रचा गया, किन्तु अन्त में किसी ने परवा न की । शोरे का ठेका कम्पनी को मिल ही चुका था। इस सब से राज की आमदनी में बहुत बड़ी कमी होती जा रही थी और प्रजा के अन्दर दुख, दरिद्रता और बदअमनी ज़ोरों के साथ बढ़ती जा रही थी। इस पर तारीफ़ यह कि जब कभी मोर जाफ़र अपने राज के आर्थिक, सैनिक या किसी प्रबन्ध में भी
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भारत में अंगरेज़ी राज