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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेजी राज मीर जाफर से हथिया लेना उसके लिए कुछ भी कठिन न था, अंगरेज़ इतिहास लेखक बड़े अभिमान के साथ ज़िक्र करते हैं। बंगाल की मसनद के बदले में मीर जाफर ने जितना धन अंगरेजों को देने का वादा किया था उसकी एक सब से धनवान एक पाई वसल की जा चुकी थी । व्यापार के अगरेज़ लिए वंगाल में अनेक नई रियायते कम्पनो को नवाव से मिल चुकी थीं और इन बाकायदा रियायतों के अलावा अनेक चीजों की तिजारत का ठेका कम्पनी ने जबरदस्ती अपने हाथों में ले रक्खा था। तीनों प्रान्तों में अंगरेजों के छल और बल दोनों का सिक्का जम चुका था। क्लाइव जो कुछ साल पहले एक निर्धन क्लर्क की हैसियत से भारत आया था, इस समय शायद संसार में सव से अधिक धनवान अंगरेज था। इस तरह बहुत हद तक अपना मतलब पूरा कर फ़रवरी सन् १७६० में क्लाइव अपनी जन्मभूमि इंगलिस्तान के लिए रवाना हो गया। किन्तु अपनी कोम के लिए क्लाइव की इच्छाएँ और उमंग अभी __ वेहद बढ़ी हुई थीं। उसके नीचे लिखे पत्र से भारत में अंगरेज़ी मालम होता है कि भारत में अंगरेजी राज कायम राज कायम करने करने के विषय में उसका दिमाग किस तरह की लाइव की योजना काम कर रहा था । ७ जनवरी सन् १७५६ को इंगलिस्तान के प्रधान मंत्री विलियम पिट के नाम क्लाइव ने यह पत्र लिखा:- अंगरेज़ी फ़ौज की कामयाबी के ज़रिये एक महान क्रांति इस देश में की