भारत में अंगरेजी राज उसकी छाती पर सवार था। सम्भव है क्लाइव की ओर से भी मीर जाफ़र के दिल में दगा का डर रहा हो। क्लाइव के सामने पहुँचते ही ठीक उस समय जब कि गारद उसकी पेशवाई के लिए आगे बढ़ी, मीर जाफर घबराकर चौंक पड़ा। उसका चेहरा एक दम स्याह पड़ गया। क्लाइव ने फौरन उसे गले लगाकर 'तीनों प्रान्तों का सूबा' कह कर सलाम क्रिया। मीर जाफ़र सँभला । क्लाइव ने उसे विश्वास दिलाया कि अंगरेज धर्म समझ कर अपने वादों को पूरा करेंगे। इसके बाद क्लाइव ने उसे सिराजुद्दौला का पीछा करने की सलाह दी। फौरन वहाँ से कूच कर २५ तारीख को सवेरे मीर जाफ़र मुर्शिदाबाद पहुंचा। एक दिन पहले यानी २४ को सवेरे सिराजुद्दौला मुर्शिदाबाद पहुँच चुका था । सिराजुद्दौला का खजाना सिराजुद्दौला फ़कीरी ' लबालब भरा हुआ था । धन को पानी की तरह बंप में बहाकर उसने फिर एक बार फौज खड़ी करने और अपनी किस्मत आजमाने का प्रयत्न किया। किन्तु मासी की पराजय की ख़बर सारे देश में बिजली की तरह फैल चुकी थी। सिराजुद्दौला के इकबाल का सूर्य अब अस्त हो रहा था और अस्त होने वाले सूर्य की पूजा कोई नहीं करता। सिराजुद्दौला ने देख लिया कि अब कोई मेरा साथ देने के लिए तैयार नहीं है। उसके कुछ दरबारियों ने उसे सलाह दी कि श्राप हार मानकर विदेशियों के साथ सन्धि कर ले, किन्तु उस वीर ने अत्यन्त तिरस्कार के साथ इस सलाह को ठुकरा दिया। अंत में देशद्रोही मीर जाफ़र के श्राने
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भारत में अंगरेज़ी राज