पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३५१

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सिराजुद्दौला

सिराजुद्दौला भीर मदन की मृत्यु से सिराजुद्दौला लाचार हो गया। उसका दिल टूट गया। श्राज तक मासी गांव के लोग मीर जाफ़र की दगा और मीर मदन की वफादारी दोनों का अत्यन्त करुणा भरे शब्दों में जिक्र करते हैं। __ थोड़े से रक्तपात के बाद २३ तारीख की शाम तक असहाय सिराजुद्दौला को अपने हाथी पर सवार होकर मुर्शिदाबाद की ओर भागना पड़ा। मैदान क्लाइव और मीर जाफ़र के हाथों में रहा। सुप्रसिद्ध अंगरेज़ इतिहास लेखक करनल मालेसन उस दिन की लड़ाई के विषय में लिखता है :- "केवल उस समय अब कि विश्वासघातकता अपना काम कर चुकी, जब कि विश्वासघातकता ने नवाब को मैदान से बाहर निकाल दिया, जबकि विश्वासघातकता नवाब की सेना को ऊँचे और दुर्जेय स्थान से हटा चुकी, केवल उस समय क्लाइव आगे बढ़ सका, इससे पहले क्लाइव के आगे बढ़ने मैं उसका (और उसकी सेना का) नेस्त नाबूद हो जाना असन्दिग्ध था।" लाइव ने अपनी सेना सहित पास के गाँव दादपुर में रात गुज़ारी। शुक्रवार २४ ता० को सवेरे क्लाइव ने मीर जाफर ___मीर जाफ़र को अपने खेमे में बुलाया। मीर का पाप जाफ़र अपने बेटे मीरन को लेकर क्लाइव के खेमे में पहुँचा। मालूम होता है मीर जाफर का पाप इस समय

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