लेखक की कठिनाइया प्रसिद्ध अंगरेज तत्ववेत्ता हरबर्ट स्पेन्सर ने लिखा है कि फ्रान्स का एक बादशाह जब इतिहास को कोई पुस्तक पढ़ना चाहता था तो अपने लाइब्रेरियन से कहता था,-"मेरे झूठ बोलने वाले को ले पात्रो।" स्पेन्सर लिखता है कि फ्रान्सीसी बादशाह का यह कहना बेजा न था। इसके बाद आजकल के इतिहासों का जिक्र करते हुए स्पेन्सर लिखता है- "राजाओं के शासन कालों, लड़ाइयों और इस तरह की मामूली घटनाओं के अलावा जो अाजकल की तमाम कौमों के इतिहास में मिलती हैं, हमें सिवाय उन सन्धियों के जो तोड़ने ही की ग़रज़ से की जाती हैं, उन सरकारी पत्रों के जो बेईमान और झूठे अफसरों के हाथ के लिखे होते हैं, उन गप्पों से भरे हुए ख़तों के जो दरबारियों द्वारा भेजे जाते हैं, और इसी तरह की और चीज़ों के, कोई ऐसी बात नही मिलती जिस पर हम विश्वास कर सकें। इस तरह की सामग्री से कोई भी सत्य का खोजी सत्य का पता कैसे लगा सकता है ?xxx" सरकारी कागजों में झूठ भारत में अंगरेजी राज का इतिहास ज़्यादातर ईष्ट इण्डिया कम्पनी की love of truth can hardly co-exist with a strong political spant In all count rres where the habits of thought have been mainly formed by political life, we may discover a disposition to make expediency the test of truth "-Lecky in his Rationalism in Europe
- “ Beyond accounts of kings' regns, of battles, and of incidents
named in the chronieles of all the nations concerned, we have nothing te depend on but treatles made to be broken, despatches of corrupt and lyin. oficials, gossigung letters of courtzers and so forth How from these ma terials shall we distai the truth ? "-Herbert Spencer's Facts ane Comments