भारत में अंगरेजी राज निकले। अगले दिन जब सिराजुद्दौला को इस छल का पता चला, तो उसने क्लाइव और वाट्सन को इस घटना की सूचना देते हुए दुख के साथ लिखा:-- “xxx इससे साफ धोखा साबित होता है और सन्धि तोड़ने का इरादा ज़ाहिर होता है x x xi "खुदा का शुक्र है कि सन्धि मेरी ओर से भंग नहीं की गई, खुदा और रसूल के सामने हमने आपस मे सुलह की थी और जो कोई पहले उसका उल्लङ्घन करंगा अपने किए की सज़ा पावेगा।" निस्सन्देह सिराजुद्दौला और उसके विपक्षियों के चरित्र में श्राकाश पाताल का अंतर था ! भोले सिराजुद्दौला ने क्लाइव के 'प्रेम भरे पत्रों' पर विश्वास करके हाल ही में अपनी श्राधी सेना तक बरखास्त कर दी थी। १२ जून को मीर जाफर की ओर से कलकत्ते पत्र पहुंचा, जिसमें लिखा था कि “यहाँ सब काम तैयार है"। अगले दिन १३ जून को अंगरेजी सेना ने कलकत्ते से कूच किया। सिराजुद्दौला को भी अब मजबूर होकर अपनी सेना मैदान में निकालनी पड़ी। सिराजुद्दौला की इतनी बेपरवाही और उसका श्रात्मविश्वास झूठा न था। सिराजुद्दौला की सेना अब भी ब्लाइव और उसकी समस्त सेना को थोड़े से समय के अंदर निर्मूल कर देने के लिए काफ़ी थी। किन्तु वही मीर जाफ़र इस समय सिराजुद्दौला का प्रधान सेनापति था। पुराने हिन्दोस्तानी रिवाज के अनुसार सिराजुद्दौला स्वयं मीर जाफर के महल में
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भारत में अंगरेज़ी राज