पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३४५

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सिराजुद्दौला

सिराजुद्दौला म कभी पीठ नहीं दिखाई उससे जा मिलूंगा ! उसे विश्वास दिला दो कि मैं दिन दिन भर और रात रात भर चल कर उसकी मदद के लिए पहुँचगा और जब तक मेरे पास एक आदमी भी अचेगा तब तक उसका साथ न छोडूंगा'।" किन्तु चन्दरनगर अंगरेजों के हाथों में जाने के समय से सिराजुद्दौला का हृदय बहुत कुछ सशंक हो गया फ्रांसीसियों के साथ था। चन्दरनगर की विजय के बाद अंगरेजों सान्ध का उल्लघन और फ्रांसीसियों के दरमियान जो सन्धि हुई थी उसके विरुद्ध अंगरेजों ने सिराजुद्दौला के सामने अब यह एक और नई माँग पेश की कि कासिमबाजार, ढाका, पटना, जूदा, बालेश्वर इत्यादि में फ्रांसीसियों की जितनी कोठियाँ हैं और जितने फ्रांसीसी अापके राज में हैं उन सबको आप हमारे सुपुर्द कर दें। फ्रांसीसियों को बंगाल के अंदर कोठियाँ बनाने और व्यापार करने को इजाजत ठीक उसी तरह दिल्ली सम्राट से मिली हुई थी जिस तरह अंगरेजों को। अभी तक फ्रांसीसियों ने न कभी सम्राट या उसके सूबेदार की किसी आज्ञा को भंग किया था और न उन्हें किसी तरह का कष्ट पहुँचाया था । इसलिए अंगरेजों की इस बेजा माँग के उत्तर में सिराजुद्दौला ने १४ अप्रैल को वाट्सन को लिख दिया :- • He then a rote to hirarutidis rlt in terms so affectionate that they for a time Tuls that peth rane to perfect security, Ilhe same tourner whr cirrea thrs 50othing letter' as Clne call it, carried to I Trutse Herter in the follusing terms Tell Mir jafir to fear lothing. I will jon him with the thousand cil who mere turtled their hacks .Issure. lam, I will mmarli nght and dav tu hrs assistance and stand iy nin as Jong as I lieve anit '--Satara} = Essay on Clice.