पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३२९

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सिराजुद्दौला

३ सिराजुद्दौला “मैं अनुमान करता हूं कि जो पत्र कल मैंने तुम्हें लिखा है वह मिला होगा। उसके बाद फ्रांसीसी वकील ने मुझे इत्तला दी है कि तुम्हारे पाँच या छै नए जंगी जहाज़ हुगली में आ गए हैं और औरों के आने की श्राशा है। फ्रांसीसी वकील अह भी कहता है कि बारिश खतम होते ही तुम मेरे और मेरी प्रजा के साथ फिर से लड़ाई शुरू करने की तजवीजें कर रहे हो ! यह व्यवहार एक सच्चे सिपाही को और एक ऐसे धान वाले मनुष्य को जो अपने वादे का एक्का है शोभा नहीं देता। यदि नुम उस सन्धि की श्रोर सच्चे हो जो तुमने मेरे साथ की है, तो अपने जंगी जहाज़ नदी से बाहर भेज दो और अपने अहदनामे पर पूरी तरह कायम रहो, मैं अपनी ओर से सन्धि का पालन करने में न चूकगा। इतनी सजीदगी के साथ सन्धि कान के फ़ौरन ही बाद फिर जंग शुरू कर देना क्या उचित या ईमानदारी है ? मगठे किसी इलहामी किताब से बँध हुए नहीं हैं, तो भी ये अपनी सन्धिों का बिलकुल ठीक ठीक पालन करते हैं। इसलिए यह बड़े आश्चर्य की और विश्वास के अयोग्य बात होगी, यदि ईसाई लोग जिन्हें इलील की रोशनी हासिल है, उस सन्धि पर कायम और पक्कं न रहें जिसे उन्होंने ख़ुदा और ईसामसीह के सामने कबूल किया है।" २३ फरवरी को यह पत्र वाट्सन को मिला। २५ को उसने सिराजुद्दौला के नाम इस प्रकार उत्तर लिखा :- "xxx मैं नहीं जानता कि आप पर उस हैरानी को किस तरह जाहिर करूँ जो मुझे यह देखकर हुई है कि महज़ इस हलकी सी बिना पर कि किसी कमीने शख्स ने वापसे यह कह देने का साहस किया कि मैं शान्ति भंग करने को तजवीज़ में हूँ, आपने सचमुच मुझ पर यह इलज़ाम