पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३२३

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सिराजुद्दौला

सिराजुद्दौला समय सिराजुद्दौला और अंगरेजों के बीच हुई उस के विषय में रेनाल्ट अपने ४ सितम्बर के एक पत्र में लिखता है :- अंगरेज़ों ने अपनी सारी स्थल सेना और उसके साथ अपने जहाज़ों के तमाम सिपाही लड़न को भेज दिए। वे सोते हुए मुसलमानों के ऊपर धोखा देकर अचानक टूट पड़े, फिर भी इस लड़ाई से जितने लाभ की उन्हें श्राशा थी उसना न हो सका । शुरू में वे शत्रु को थोड़ा सा पीछे हटा पाए, किन्तु फिर ज्योही सिराजुद्दौला ने अपनी सेना का एक भाग जमा कर लिया, न्योंही अंगरेज़ों को खुद पीछे हट जाना पड़ा । अँगरेज़ी सेना बेतरतीबी के साथ पोछे को भागी और यह उनकी बड़ी खुशकिस्मती थी कि वे अपने किले की दीवारों के नीचे तोपों के सुरक्षित साए में पहुँच सके । इस लड़ाई में अँगरेजों के करीब २०० आदमी काम पाए ।"* निस्संदेह अंगरेजों को इस विश्वासघात का बदला देने के योग्य नवाब के पास अब भी काफ़ी सेना थी, किन्तु और भागे चल कर रेनाल्ट लिखता है :- "नवाब के मंत्रियों ने जो प्रायः सभी अंगरेजों के तरफदार थे और केवल सुलह कर लेना चाहते थे, इस मौक्त से फायदा उठाकर नवाब को सुलह के लिए मजबूर किया । दूसरी तरफ़ अपने सेनापतियों की बगावत से लाचार होकर x x x नवाब ने देखा कि सुलह के लिए राजी हो जाने के सिवा उसके पास और कोई चारा न था। उसे अत्यन्त कड़ी शर्ते स्वीकार करनी पड़ी। R Tihnd, rol i n 246