भारत में अंगरेजी राज सेना देर तक सिराजुद्दौला के गोलों का सामना न कर सकी। अंत में अंगरेजों को हार स्वीकार करनी पड़ी। ____ रविवार २० जून सन् १७५१ को सिराजुद्दौला की विजयी सेना ने कलकत्ते की अंगरेज़ी कोठी में प्रवेश किया । कोठी के तमाम अंगरेज़ कैद कर लिए गए ! सिराजुद्दौला के लिए इस समय कलकत्ते के इन बागी विदेशी व्यापारियों का वहीं एक एक कर काम तमाम कर देना और उनकी कोठी को नेस्तनाबूद कर देना एक बहुत आसान काम था, किन्तु उदार सिराजुद्दौला इन लोगों के छलों से अभी तक पूरी तरह परिचित न हुआ था। सिराजुद्दौला के हुकुम से किले के अन्दर एक दरबार लगा, जिसमें तमाम यूरोपियन कैदी नवाब के सामने सिराजुद्दौला की पेश किए गए। कैदियों ने नवाव से क्षमा की उदारता " प्रार्थना की। उदार भारतीय नवाब ने उन सबकी जाने बख्श दी * अंगरेज इतिहास लेखक जेम्स मिल लिखता है - "जब मिस्टर हॉलवेल (कलकत्तं की कोठो का मुखिया ) हथकड़ी पहन हुए नवाब के सामने पेश किया गया, तो नवाब ने फ़ौरन हुकुम दिया कि हथकड़ी खोल दी जाय और स्वयं अपनी सिपहगरी की शपथ खाकर हॉलवेव को विश्वास दिलाया कि "तुम्हारे पा म्हारे किसी साथी के सर का एक बाल भी किसी को छूने न दिया जायगा । यही इतिहास लेखक स्वीकार करता है कि विजयी हिन्दोस्तानी
- Talboys Wheeler's Early Recortis of British Indra, vol 4 p 160
History of India, by jamesNill, vol, 1112 1179