पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/३०१

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सिराजुद्दौला

सिराजुद्दौला हुकुम दिया, तो श्रमीचंद के वफ़ादार हिन्दोस्तानी जमादार का रक्त खौलने लगा। गोरे सिपाहियों की नियत जाहिर थी। श्रीर्म नामक यूरोपियन इतिहास लेखक इस घटना के विषय में लिखता है - "श्रमीचंद के जमादार ने जो एक ऊँची जात का हिन्दोस्तानी था, मकान को आग लगा दी और फिर कहा जाता है इसलिए ताकि विदेशी लोग घर की स्त्रियों की बेइज्जती न कर सकें, उसने जनानखाने में घुसकर अपने हाथ से तेरह स्त्रियों का काम तमाम किया और फिर अंत में अपने भी खञ्जर धोप लिया। किन्तु उसका अपना ज़रूम कारगर न हो सका ।"* अनेक अंगरेज इतिहास लेखक शिकायत करते हैं कि बहुत से भारतीय कुलियों, मल्लाहो और नौकरों ने उस समय अंगरेज व्यापारियों का साथ छोड़ दिया। यदि यह बात सच है तो ऊपर के अत्याचारों में इसके लिए काफ़ी वजह मौजूद थी। १६ जून को सिराजुद्दौला कलकत्ते पहुँचा । १६ और १७ को ___ कई छोटी मोटी लड़ाइयाँ हुईं ! १८ को शुक्रवार विजयी सिराजुद्दौला के दिन कम्पनी की ओर से साफ़ आज्ञा निकली का कलकत्ता प्रबंश कि यदि शत्र का कोई आदमी जखमी होकर या किसी और वजह से पनाह की प्रार्थना करे तो उस पर कोई किसी तरह की दया न दिखावे । उसी दिन सिराजुद्दौला की सेना ने कम्पनी की सेना पर बाज़ाब्ता चढ़ाई की और बावजूद सिरा- जुद्दौला के अनेक ईसाई नौकरों की नमकहरामी के कम्पनी को

  • Orme, vol II, p 60