पुस्तक प्रवेश शायद किसी भी प्राचीन कौम ने इस विषय में इतना अधिक परिश्रम नहीं किया जितना अरबों ने । ईसा की १५ वी सदी में प्रसिद्ध मुसलमान इतिहास लेखक अलबरूनी ने इतिहास कला पर बड़ी सुन्दर वैज्ञानिक विदेचना की है और इतिहास के विद्यार्थियों को सावधान किया है कि हर इतिहास लेखक की स्वाभाविक प्रवृत्तियों से कितनी तरह की प्रान्तियाँ पैदा हो सकती हैं जिनसे बच सकना उसके लिए अत्यन्त कठिन है । और भी अनेक प्रामाणिक इतिहास लेखकों और इतिहास कला विशारदों के नाम उस समय के अरबों में मिलते हैं। किन्तु फिर भी हमें यह स्वीकार करना होगा कि विस्तृत इतिहास लिखने का जो रिवाज अाजकल के समय में प्रचलित है यह प्राधीन देशों में कहीं न था । प्राचीन संसार में, और खास कर प्राचीन भारत में, पानकल के अर्थों में अपने अपने देशों या जातियों के इतिहास लिखने का काम न इतना ज़रूरी समझा जाता था और न उसे इतना महत्व दिया जाता था। यही वजह है कि प्राचीन भारत का कोई सिलसिले- वार इतिहास नहीं मिलता, और अधिकांश पुरानी सभ्यताओं के इतिहास का पता लगाने के लिए हमें पौराणिक कथानों, तरह तरह के साहित्य, परम्परागत गाथाओं और उस समय के शिला लेखों, खुदे हुए अवशेषों, सिक्कों इत्यादि की ही मदद लेनी पडती है ।
वास्तव में इतिहास लिखने की कला को जो इतना ज़्यादा महत्व आजकल दिया जाता है उसकी खास वजह आजकल की मुखतलिफ़ कौमों की मानसिक स्थिति है, और शायद मानव जाति की वास्तविक उन्नति की दृष्टि से यह कला इतने अधिक महत्व की नहीं है जितनी समझी जाती है। आजकल किसी समय के इतिहास का अधिकतर सम्बन्ध उस समय की राजनैतिक अवस्था