भारत में यूरोपियन जातियों का प्रवेश १९ गिरी हुई चीज़ ख़याल करते थे। सूरत में लोगों के मुँह से इस प्रकार के वाक्य प्रायः सुनने में श्राते थे---'ईसाई मजहब शैतान का मज़हब है, ईसाई बहुत शराब पीते हैं, ईसाई बहुत बदमाशो करते हैं, और बहुत मार पीट करते हैं, दूसरों को बहुत गालियाँ देते हैं।' टेरी ने इस बात को स्वीकार किया है कि भारतवासी स्वयं बड़े सच्चे और ईमानदार थे और अपने तमाम वादों को पूरा करने मे पक्के थे, किन्तु यदि कोई हिन्दोस्तानी सौदागर अपने माल की कुछ कीमत बताता था और उस कीमत से बहुत कम ले लेने के लिए उससे कहा जाता था तो वह प्रायः जवाब में कह पढ़ता था---'क्या तुम मुझे ईसाई समझे हो, जो मैं तुम्हें धोखा देता फिरूँगा ?"* अंगरेज़ सब से पहले सूरत में पहुँचे और सब से अंत में बंगाल पहुँचे, किन्तु वहाँ भी उनका व्यवहार वैसा ही रहा। इतिहास लेखक सी० आर० विलसन लिखता है :- “बाल में भी अंगरेज़ अपने झगड़ालूपन के लिये उतने ही बदनाम थेxxx वहाँ का बूढ़ा सूबेदार नवाब शाइस्ता खाँ उन्हें 'नीच, झगड़ालू लोगों और जुत्राचोरों की कम्पनी' कहा करता था और आजकल का कोई ज़बर- दस्त प्रामाणिक इतिहासज्ञ इस बात से इनकार नहीं कर सकता कि नवाब के
- ' But, according to Terry, the natives had formed a mean estimate of
Christianity. It was not uncommon to hear them at Surat giving utterance to such remarks as-Christian religior, dev.l religion, Christian much drunk, Christian much do wrong, much heat, much abuse others. Terry admitted that the natives themselves were very square' and exact to make good all their engagements, but if a dealer was offered much less for his articles than the price which he had named, he would be apt to say, TVhat! dost thon think me a Cirsusn. that I would go about to deceive thees'"-1brd,232