पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२५९

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भारत में यूरोपियन जातियों का प्रवेश

भारत में यूरोपियन जातियों का प्रवेश ७ इनके उपयोग को मानवधर्म के विरुद्ध समझते थे और पुर्तगाल- निवासी इन हथियारों के इस्तेमाल में होशियार थे। इस सबसे बढ़कर भारतवासी राजनीति में अत्यन्त भोले थे ! नतीजा यह हुआ कि सौ सवा सौ साल के अंदर पुर्तगालियों ने भारतीय व्यापार से इतना अधिक धन कमाया कि उसे देख अन्य यूरोपनिवासी दंग रह गए और इसी समय के अंदर पुर्तगाली मङ्गलोर, कच्चिन, लङ्का, दिव, गोश्रा, बम्बई के टापू और नेगापट्टन के मालिक बन बैठे।। पुर्तगालियों के उस समय के व्यापार को दो वातें खास तौर र पर जानने योग्य हैं। एक यह कि इन लोगों के व्यवहार - कुछ जहाज़ भारत के पूर्वी और पच्छिमी तटों के वरावर बराबर घूमते रहते थे और किसी भी भारतीय जहाज़ को पास से निकलते हुए देखकर उसे पकड़ कर लूट लेते थे। अपने जहाजों में बैठकर ये लोग किनारे की आबादियों पर भी धावा कर देते थे, उन्हें लूट लेते थे और कभी कभी मौका पाकर वहाँ के पुरुष स्त्रियों को गुलाम बनाकर पकड़ ले जाते थे। दूसरे ये लोग अफरीका और अन्य देशों से अपने जहाजों में गुलाम भर भर कर लाते थे और भारत के वाज़ारों में, विशेष कर उन स्थानों में जो उनके अधीन थे, अत्यन्त सस्ते दामों पर बेच डालते थे। भारत के जिन हिस्सों पर पुर्तगालियों का कब्ज़ा हो गया था, वहाँ की प्रजा के साथ इन लोगों का व्यवहार अत्यन्त अनुदार था। ये लोग कट्टर ईसाई थे और जिस देश पर इनका राज होता