पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२४८

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश हमाना हृदय प्राशा और विश्वास से भरा हुआ है। एक बार अपने कर्तव्य को समझ लेने पर हमें अपने देशवासियों के साहस और उनकी शक्ति मे भी पूरा भरोसा है। हमें विश्वास है कि अाजकल का श्रादर्शशून्य सन्तत संसार इन सब बातों में भारत ही से सच्चे मार्ग प्रदर्शन की बाट जोह रहा है। अपने देश के सन् १९१६ से अब तक के इतिहास को ध्यान ये देखते हुए हमे निकटवर्ती भविष्य में भारत और फिर स्वाधीन भारत के पग उस भाबी अपूर्व दिग्विजय की अोर साफ बढते हुए दिखाई दे रहे हैं। - - - - - - C