हमारा कर्तव्य २०३ ओर अग्रसर होना होगा । हमें यह पूरी तरह ध्यान में रखना होगा कि जिन सदाचार शून्य स्वार्थमय नीवों पर यूरोप ने अपनी भाजकल की सभ्यता को कायम करना चाहा और जिनके बल्ल उसने भारतीय जीवन को इतनी भयंकर हानि पहुँचाई, उनका नतीजा अन्त में क्या हुअा । आजकल की सारी यूरोपियन सभ्यता अपने अद्भुत विज्ञान, विशाल पुतलीघरों, विचित्र साम्राज्यवाद और नवीन भयंकर पंजीवाद को लेकर दो सौ साल भी सुख चैन से न जी सकी। श्राज यूरोप मनुष्य मनुष्य के बीच कलह, श्रेणी श्रेणी के बीच कलह, और देश देश के बीच कलह का मकतब बना हुया है। यूरोप ही के हर देश को १० फीसदी आबादी के लिए यह अन्तर्वर्गीय और अन्तर्राष्ट्रीय कलह और प्रतिस्पर्धा, दुख, विपत्तियों और सार्वजनिक नाश का कारण साबित हो रही है। पिछले यूरोपियन महायुद्ध ने यूरोप के कुछ विचारवान लोगों की आँखें इस विषय में खोल दी है । वे अपने नैतिक आदर्शों को बदलने या यूं कहना चाहिए कि अपने यहाँ के जीवन में नैतिक आदर्श उत्पन्न करने की आवश्यकता को अनुभव करने लगे हैं । रूस जैसे देशों के पैर उस ओर को थोड़े बहुत बढते हुए भी दिखाई दे रहे हैं। किन्तु विविध यूरोपियन देशों के जिन शासकों को पूँजी वाद और नवीन साम्राज्यवाद के नशे ने उन्मत्त कर रक्खा है वे अभी तक अपनी इस घातक प्रवृत्ति से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं हैं, और न शायद वे अभी तक उसे धातक अनुभव करते हैं। नतीजा यह है कि पिछले महायुद्ध से एक कहीं अधिक भयङ्कर और विकराल नया महायुद्ध इस समय संसार की आँखों के सामने फिर रहा है, जो सम्भव है, वर्तमान यूरोपियन सभ्यता के लिए मौत का ताण्डव नृत्य साबित हो । वास्तव में समस्त
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हमारा कर्त्तव्य