लोगों ने संसार के विविध साम्राज्यों के बनने और बिगडने के इतिहासों को ध्यान मे पढ़ा है और उनके कारणों का अध्ययन किया है, वे पूरी तरह समझ रहे हैं कि ब्रिटिश साम्राज्य की अवस्था इस समय बिलकुल उस विशाल वृक्ष के समान है जिसका तना ऊपर से देखने में मोटा है, जिसकी शाखें लम्बी हैं, जिस पर कहीं कहीं धने पत्ते भी नज़र आते हैं, किन्तु जिसकी जड़ों को आन्तरिक दोषों ने दीमक की तरह इधर से उधर तक खोखला कर रक्खा है, और जिसका किसी समय भी हवा के एक झोंके से उन्मूल हो जाना असन्दिग्ध है।
हम केवल अलंकार की भाषा का उपयोग नही कर रहे हैं । इतिहास के एक विनम्न विद्यार्थी की हैसियत से हमारा अनुमान है कि जितने लक्षण भी किसी साम्राज्य के नाश के समय उसमे पैदा हो जाते है और जो उसे मृत्यु की ओर ले जाए बिना नहीं रह सकते वे इस समय मिटिश साम्राज्य के अन्दर जोरों के साथ उभर रहे हैं। इंगलिस्तान के प्रसिद्ध दार्शनिक और तत्ववेत्ता एडवर्ड कारपेण्टर ने अस्यन्त मर्मस्पर्शी शब्दों में अपने देश की तुलना एक ऐसे मरणासन्न व्यक्ति के साथ की है जिसकी नाड़ियों में जगह जगह 'स्वर्ण रज' के अटक जाने के कारण उन नाड़ियों से रक्त का प्रवाह करीब करीब बन्द हो चुका ।
दूसरी बात हमने उपर यह कही थी कि किसी तरह की घबराहट या आवेश में आकर हम मानव जीवन के उच्चतर नैतिक सिद्धान्तों से न डिगने पाएँ। वास्तव में भारतवासियों के लिए सब से पहला काम अपले धार्मिक और नैतिक आदर्शों को स्थिर करना है। उसके बाद उन्हें अपने कर्तव्य की