पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२३७

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अंग्रेजों का आना

अगरेज़ों का आना १६७ केवल सवा सौ साल पहले यानी १६ वीं सदी के शुरू तक जो देश अपने उद्योग धन्धों की दृष्टि से शायद केवल एक चीन को छोडकर संसार का सब से अधिक उन्नत देश स्वीकार किया जाता था और नो उस समय तक आधे से अधिक सभ्य संसार की, जिसमे इङ्गलिस्तान और झांस भी शामिल थे, कपड़े इत्यादि की श्रावश्यकता को पूरा करता था, वह प्रान अपने जीवन की एक एक आवश्यकता के लिए, यहाँ तक कि अपना तन ढकने के लिए दूसरों का मोहताज है । इन सब बातों के अकाश्य सबूत इस पुस्तक में उचित स्थान पर दिए जायेंगे। ऊपर लिखी हानियों से कहीं अधिक भयङ्कर हानि जो दूसरे देश की राजनैतिक अधीनता किसी भी देश को पहुंचा सकती है, वह उस देश के चरित्र का नाश है। समाज विज्ञान का प्रसिद्ध अमरीकन विद्वान ई० १० रॉस लिखता है। __“किसी भी राष्ट्र के चरित्र के अधःपतन के सबसे प्रबल कारणों में से एक कारण उस राष्ट्र का किसी विदेशी कौम के अधीन हो जाना है।" अपने समय के भारतवासियों के चरित्र को बयान करते हुए यूनान इतिहास लेखक एरियन लिखता है कि- “इन लोगों मे अद्भुत वीरता है, युद्ध विद्या में ये समस्त एशिया निवासियों से बढ़कर हैं । सरलता और सञ्चाई के लिए ये विख्यात हैं। ये इतने समझदार हैं कि इन्हें कभी मुकदमे-

  • “Subjugation to a foreign yoke is one of the most potent causes o

the decay of national character "-Professor E A Ross Pranaples o Sorrology, Pp 132, 133