पुस्तक प्रवेश करनल मालेसन ने अपनी पुस्तक 'दी डिसाइसिब बैटिल्स ऑफ़ इण्डिया' में स्वीकार किया है कि सन् १७५७ से १८२७ तक जो असंख्य लड़ाइयाँ अंगरेजों और भारतवासियों के बीच लड़ी गई उनमें एक भी ऐसी नही हुई जिसमे अंगरेजी सेना एक ओर रही हो और हिन्दोस्तानी सेना दूसरी ओर, और फिर अंगरेजों ने विजय प्राक्ष की हो। इस तरह के संग्राम, जिनमें अंगरेज़ एक ओर थे और हिन्दोस्तानी दूसरी ओर, अनेक बार हुए, किन्तु उनमें सदा अंगरेज़ों को ज़िल्लत के साथ हार खानी पड़ी। जहाँ कहीं किसी संग्राम मे अंगरेजों ने विजय प्राप्त की है वहाँ सदा हिन्दोस्तानियों मे दो दल दिखाई दिए हैं, एक विदेशियों के विरुद्ध और दूसरा उनके पक्ष मे । यह एक अकाट्य, किन्तु लजाजनक सच्चाई है कि अंगरेजों ने भारतवर्ष को तलवार से नहीं जीता, बल्कि भारतवासियों ने अपनी तलवार से अपने देश को जीत कर विदेशियों के हवाले कर दिया । हमारे इस कथन के यथेच्छ सबूत पाठकों को इस पुस्तक के करीब करीब हर अध्याय में मिलेंगे। हमारा पतन किन्तु जो हो, अब हमें इस भीषण सच्चाई की ओर ध्यान देना होगा कि हमारी इन दो सौ साल की लगातार ग़लतियों या कमजोरियों ने हमें कहाँ से कहाँ पहुंचा दिया। केवल दो सौ साल पहले जो देश संसार का सब से अधिक खुशहाल और सब से अधिक बलवान देश समझा जाता था वह आज संसार का सब से अधिक दरिद्र और सब से अधिक निर्बल और असहाय देश माना जाता है । कंवल डेढ़ सौ साल पहले जिस देश में एक भी पुरुष या स्त्री किसी गाँव के अन्दर एसा न मिल सकता था जो लिखना पदना न जानता हो, वहाँ आज १३ नी सदी आबादी बिल्कुल अनपढ है .
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