पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२३१

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अंग्रेजों का आना

अंगरेज़ों का श्राना भी थे। वास्तव में इस विषय में अंगरेज़ों और भारतवासियों के चरित्र में बहुत बड़ा अन्तर है। इस देश में मराठे सब से अधिक चतुर राजनीतिज्ञ माने जाते थे । मराठों ने कई बार बङ्गाल पर हमला किया। फिर भी बङ्गाल के मुसलमान सूबेदार अलीवी खाँ ने कहा था कि मराठों ने कभी भी अपनी सन्धियों का उल्लङ्घन नहीं किया। अङ्गारेजों और भारतीय नरेशों के करीब सौ साल के सम्बन्ध में शायद एक भी मौका ऐसा नहीं हुआ जिसमें किसी भी भारतीय नरेश ने अंगरेजों के साथ अपनी सन्धि का उल्लङ्घन किया हो । मच यह है कि अनेक भारतीय नरेशों की मुसीबतों का ख़ास सब यही हुआ कि उन्होंने ऐसे ऐसे मौकों पर कम्पनी के साथ अपनी सन्धियों का ईमानदारी के साथ पालन किया, जब कि उन सन्धियों का पालन उनके और उनके देश के लिए सात अहितकर दिखाई डे रहा था । हमारे इस कथन के सबूत में असंख्य मिसालें पाठकों को स्थान स्थान पर इस पुस्तक में मिलेंगी। इसके विपरीत अंगरेज़ों के अपनी सन्धियाँ पालन करने या न करने के विषय में प्रसिद्ध अंगरेज़ इतिहास लेखक सर जॉन के जो इङ्गलिस्तान के इण्डिया ऑफिस के 'पोलिटिकल और गुप्त विभाग का सेक्रेटरी रह चुका था, लिखता है- ___"मालूम होता है कि अंगरेज़ सरकार ने सन्धियों के तोडने का ठेका ले रक्खा था । यदि मौजूदा अहदनामों के तोड़ने की सज़ा में किसी से उसका इलाका छीना जा सकता है, तो इस समय ब्रह्मपुत्र से लेकर सिन्धु नदी तक एक चप्पा जमीन भी भारत में अंगरेजों के पास नहीं बच सकती।"

  • "twould seem as though the BrrashGovernment claimed to itseli