अंगरेज़ों का आना कि उन्हे इस बात की चिन्ता रहती थी कि किसी व्यापारी को हमारे राज के अन्दर नुकसान न होने पाए । यही वजह थी कि मुग़ल सम्राट शाहजहाँ ने एशियाई नरेशों की मर्यादा के अनुसार उदारता और दरियादिली में प्राकर अंगरेज़ कौम के व्यापारियों को भारत में रहने और व्यापार करने के लिए इस तरह की रिश्रायने अता कर दी जो आजकल का कोई नरेश किसी भी दूसरी कौम के लोगों को अपने देश में देने का कभी विचार तक न करेगा। भारतीय सम्राट को यह गुमान तक न हो सकता था कि उसकी यह नृपोचित उदारना एक दिन बढते चढते भारतीय व्यापार, भारतीय उद्योग धन्धों और भारत की राजनैतिक स्वाधीनता, तीनों के सर्वनाश का बीज साबित होगी। व्यापार की आड़ में राजनैतिक कुचक्र एक ऐसी चीज़ थी जिसका भारतवासियों को उस समय तक अपने हजारों साल के इतिहास में कभी तजरबा न हुना था, और जो किसी भी भारतीय नरेश के दिमाग में न आ सकती थी । सम्राट औरंगजेब भारत के सब से अधिक निष्ठुर सम्राटों में गिना जाता है। औरंगज़ेब ही ने अंगरेज कम्पनी की प्रार्थना पर कालीकाता, सूतानटी और गोविन्दपुर, तीन गाँव, अपने व्यापार के लिए एक कोठी बनाने को बतौर जागीर कम्पनी को प्रदान किए थे । थोड़े ही दिनों में अंगरेजों ने वहाँ पर किलेबन्दी शुरू कर दी। औरंगजेब के कर्मचारियों ने उससे शिकायत की । औरंगजेब यदि चाहता तो केवल एक शब्द द्वारा उसी समय उस किलेबन्दी को बन्द कर सकता था, या विदेशी व्यापारियों को भारत से निकाल बाहर कर सकता था । किन्तु इस शिकायत के पहुंचने पर उस भारतीय सम्राट ने बजाय किलेबन्दी को बन्द करने के उलटा अपने ही
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अंग्रेजों का आना