पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२२४

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश अंगरेजों का आना उस समय के अगरेज व्यापारी अंगरेजों के भारत श्राने और उस समय के इङ्गलिस्तान और भारत दोनों की हालत का चित्र ऊपर दिया जा चुका है। भारत में उनकी १०० साल से ऊपर की कोशिशों और काररवाइयों का विस्तृत हाल प्रामाणिक अंगरेज लेखको ही के आधार पर पाठकों को इस पुस्तक में मिलेगा। औरङ्गजेब के समय तक भारत के अन्दर अंगरेज व्यापारियों की हालत करीब करीब वैसी ही थी जैसी आजकल के भारत में हींग बेचने वाले काबुलियों या काग़ज़ के खिलौने बेचने वाले चीनियों की । औरङ्गजेब की अनुदार और अदूरदर्शी नौनि ने थोड़े दिनों में चारों ओर छोटी छोटी और एक दूसरे की प्रतिस्पर्धी रियामते पैदा कर दी, साम्राज्य की केन्द्रीय शक्ति को निर्बल कर दिया, और देश के अन्दर हिन्दू और मुसलमानों के परस्पर प्रेम और एकता की उन अलौकिक राष्ट्रीय लहरों को एक समय के लिए पीछे हटा दिया जो कवीर के समय से लेकर करीब तीन सौ साल की लगा- तार कोशिशों से देश को चिरस्थाई सुख और समृद्धि की ओर ले जाती हुई दिखाई दे रही थीं। देश के शत्रुओं को अपनी कोशिशों के लिए खुला मैदान मिल गया। ___औरङ्गजेय की मृत्यु के चन्द साल के अन्दर ही मद्रास और बंगाल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की साज़िशें शुरू हो गई जो बढ़ते बढ़ते औरङ्गजेब की मृत्यु के पचास साल बाद प्लासी के मैदान में अपना रंग लाई। कुदरती तौर पर अंगरेजों का हित इसी में था कि भारतीय जीवन की उस समय की अव्यवस्था को जिस तरह हो सके चिरस्थाई बना दें और राष्ट्रीय ऐक्य की