मुराला का समय १८३ स्नान कराया । यही हालत महाराजा रणजीत सिंह, होलकर, सींधिया, हैदर अली और टीपू सुलतान के दरवारों की थी। प्रसिद्ध मराठा नीतिज्ञ नाना फड़नवीस हैदरअली को अपना दाहिना हाथ कहा करता था और दोनों में गहरी मित्रता थी। हमने इस पुस्तक में आगे चलकर दिखलाया है कि हैदरअली की सारी नीति ही इस विषय में ठीक सम्राट अकबर की नीति की नकल थी । जगद्गुरु शङ्कराचार्य और टीपू सुलतान में एक दूसरे के लिए गहरा प्रेम था । अवध के मुसलमान नवाबों के अधीन अधिकांश बड़े बड़े ताल्लुक्केदार और मुख्य मुख्य मन्त्री तक हिन्दू होते थे, और लखनऊ दरवार उदारता, एकता और प्रेम में रंगा रहता था। इसी तरह की और भी मिसाले उस समय के इतिहास से दी जा सकती हैं। इसमें कुछ भी सन्देह नहीं कि यदि भारत को मौका मिलता तो वह शीघ्र एक औरङ्गजेब की गलती के नतीजों से पनप कर अपना पहले का परस्पर विश्वास और पहले का यौरव प्राप्त कर लेता। किन्तु भारत के दुर्भाग्य से ठीक उस समय जब कि औरङ्गजेब की सलती के नतीजे अभी ताज़े थे और दिल्ली की केन्द्रीय सत्ता एकबार निर्बल हो चुकी थी, एक ऐसी तीसरी शक्ति ने भारत के राजनैतिक मञ्च पर प्रवेश किया जिसे भारत की उस गलती से पैदा हुए परस्पर के अविश्वास और उनके बुरे नतीजों को स्थाई कर देने में ही अपना सब से बड़ा लाभ दिखाई दिया और जिसका हित हर तरह भारतवासियों के हित के विरुद्ध था, और जिसने भारत की उस समय की अस्तव्यस्त हालत से पूरा पूरा फायदा उठाया।
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मुगलो का समय