पुस्तक प्रवेश दरबार न हिन्दू दरबार थे और न सुसलिम दरबार, वे शुद्ध भारतीय दरबार थे । औरङ्गज़ब के दरबार के बारे में यह न कहा जा सकता था। अकबर और शाहजहाँ को मुसलमान जितना अपना कह सकते थे उतना ही हिन्दू अपना कह सकते थे। औरङ्गजेब के विषय में यह बात नामुमकिन थी। शाही दरबार के अन्दर दशहरे, दीवाली, रक्षा बन्धन और शिवरात्रि का मनाया जाना और भारतीय सन्नाट का उनमें हिस्सा लेना औरङ्गजेब ने बन्द कर दिया । यह सब बाते फिर एक पुरानी कहानी रह गई। गष्ट के अधिक समझदार लोगों ने, जो पहले की हितकर राष्ट्रीय प्रगति से परिचित थे, इसका विरोध किया। उन्हें दिखाई दे गया कि औरङ्गज़ब की नीति बने बनाए राष्ट्रीय जीवन के टुकड़े कर देश को नाश की ओर ले जाने वाली है। इन लोगों ने औरङ्गजेब को समझाने की कोशिश की। जिस समय औरङ्गजेब ने 'जज़िए' के उस निरर्थक किन्तु विवादास्पद कर को, जिये सम्राट अकबर ने बन्द कर दिया था, फिर से जारी करना चाहा, तो महाराला सवाई जयसिंह ने सन् १६७८ में औरङ्गजब से कहा- "खुदा केवल मुसलमानों ही का ख़ुदा नहीं, बल्कि तमाम इनसानों का खुदा है। उसके सामने हिन्दू और मुसलमान सब एक समान है। हिन्दुओं के धार्मिक रिवाजों का अनादर करना उस सर्वशक्तिमान परनामा की इच्छा की अवहेलना करना है।" अदूरदर्शी औरङ्गजेब ने इस सलाह की परवा न की । स्वभावत. राजपूत मराठे, सिख और अन्य हिन्दू राजे, महाराजे एक एक कर औरङ्गजब • Rise of the leatha Poreet, by Rallade, P 81
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