पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२१९

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मुगलो का समय

सुशालो का समय १७६ शक्तियों को नया जीवन मिल गया । वास्तव में भारत की किस्मत का जैसला कम से कम आइन्दा तीन सौ साल के लिए ३० मई सन् १६५८ को साभूगढ के मैदान में उस समय हुआ जब कि अनुदार, और अदूरदर्शी औरङ्गजेब ने उदार, और दूरदर्शी दाराशिकोह पर विजय प्राप्त की। सम्भव है कि औरङ्गजेब के स्वभाव में ही सङ्कीर्ण धार्मिकता छिपी रही हो । कहीं अधिक सम्भव है कि, जैसा हमने ऊपर लिखा है, यह सङ्कीर्ण धार्मिकना उसके लिए एक राजनैतिक आवश्यकता रही हो । किन्तु हमारे इस समय के प्रसङ्ग या भारत के भाग्य में इससे कोई फरक नहीं पड़ना। सिंहासन पर बैठते ही औरङ्गजेब ने देश की समस्त उन्नति बाधक, कट्टर मुसलिम प्रवृत्तियों को अपनी ओर जमा करना शुरू किया ! शासक की हैसियत से औरङ्गजेब अन्यायी न था । साम्राज्य की ऊँची से ऊँची पदवियाँ उसने बिना भेद भाव हिन्दू और मुसलमानों को एक समान दे रखी थीं। बिना किसी खास वजह के वह अपनी हिन्दू प्रजा के दिल को दुखाना भी न चाहता था । गोबध के खिलाफ़ लो कड़ी आज्ञाएँ सम्राट अकबर के समय से चली आती थीं, औरङ्गजेब ने उन्हें जारी रखा, और अपने ५० वर्ष के शासन काल में साम्राज्य भर के अन्दर कड़ाई के साथ उनका पालन कराया। किसानों के हित का वह ख़ास ख़याल रखता था । औरंगजेब के धार्मिक पक्षपात के जो बेशुमार किस्से देश भर में प्रचलित हैं और जिनमें से अनेक इतिहास की पुस्तकों में भी प्रवेश कर गये हैं वे अधिकांश में मूठे हैं । किन्तु औरङ्गजेब कट्टर शरई मुसलमान था ! वह इसलाम की समस्त संकीर्ण रूढ़ियों का मानने वाला था और उन पर अमल करता था। अकबर और शाहजहाँ के दरबारों के विषय में कहा जा सकता था कि वे