१४८ पुस्तक प्रवेश हर प्रान्त मे सूबेदार या नाज़िम के अलावा एक दीवान होता था । सूबेदार का काम फ़ौज का इन्तज़ाम, शासन प्रबन्ध और न्याय करना होता था। दीवान का काम लगान वसूल करना । हर दीवान की नियुक्ति की सनद मे लिखा होता था कि उसका सब से मुख्य काम "खेती के काम को और ग्रामों की आवादी को बढाना" है ! लगान की वसूली में खेतिहर के साथ किसी तरह की ज़बरदस्ती की इजाजत न थी। एक हिदायत हर सनद म यह होती थी कि- ___"यदि किसी आमिल के इलाके में कई साल की लगान की बकाया चली आती है, तो तुम उस रकम को किसानों से बहुत आसान किस्तों में वसूल करना, यानी बकाया का केवल पाँच फीसदी हर फसल के मौके पर वसूल करना !"* इसी तरह फौजदारों, थानेदारो, करोडियों, तहसीलदारों इत्यादि सब को हिदायत होती थी कि किसानों को किसी तरह का कष्ट द पहुँचाएँ । उस समय के किसानों की हालत जदुनाथ सरकार. मुग़ल साम्राज्य के दिनों के भारतीय किसानों की उस समय के झांस और श्रायरलैण्ड के किसानों से तुलना करते हुए, लिखता है- "किन्तु फरक यह था कि अंगरेजों के आने से पहले (मुग़ल- भारत में) किपी किसान को लगान अदा न करने के कसूर में जमीन से बेदखल न किया जाता था, कोई किसान भूखा न था।"xxx बटाई की प्रथा के अनुसार चूंकि लगान पैदावार
- Jind.1.88