पुस्तक प्रवेश गुम्बद अधिक देखने में आने हैं । इसलान के एक ईश्वरवाद और मूर्तिभा- कला ने भी पुराने मूर्तिपूजक धमों के मुकाबले में मुसलिम कला के इस आदर्श को अपना एक खास रूप दिया और उसे और अधिक पका कर दिया। जिस मनुष्य की आँखें प्राचीन हिन्दु मन्दिरों के विस्तार प्रपञ्च से उकता गई हों उसे एक सीधी सादी मुसलिम मसजिद की मात दीवारों में विश्राम मिलना कुदरनी है। इसी तरह जो मनुष्य पुरानी मुसलिम मसजिदों या प्रासादों की अभिनता से उब गया हो, उपके लिए हिन्दू निर्माणकला का बाहुल्य एक दरजे तक अवश्य आकर्षक होगा। दो कलाओ का आलिंगन ___ यह भी स्पष्ट जाहिर है कि इन दोनों शादी के मेल जोल से एक इस तरह की निर्माणकला को जन्म दिया जा सकता था, जो दोनों की अपेक्षा मुन्दर और अधिक आकर्षक हो । धार्मिक और जातीय पक्षपात इस तरह के सम्मिश्रण के रास्ते में बाधक होते हैं, किन्तु फिर भी दो अलग अलग आदर्शों के मिलने से जाने या अनजाने इस तरह का सम्मिश्रण हुए बिना नहीं रह सकता । इसके अलावा हम ऊपर दिखला चुके हैं कि मुसलमानों के भारत आने के समय से ही इस धार्मिक या जातीय पक्षपात के मिटाने के लिए भी अनेक कोशिशें जारी थी । जिस तरह धार्मिक विचारों में उसी तरह निर्माणकला और चित्रकारी के मैदान में भी भारत ने नए आदर्शों को जन्म देना शुरू किया, जो हिन्द्र और मुसलिम दोनों अलग अलग प्रादों से उञ्चतर थे और जिनके नतीजे भी उन दोनों के नतीजों से अधिक सुन्दर थे ! इन तीनों तरह के आदर्शों को साक्षात्त करने के लिए हमें एक ओर दक्खिन के प्राचीन मन्दिरों या जगन्नाथपुरी के मन्दिर, दूसरी ओर अजमेर
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