मानव धर्म १२६ संस्थापक कर्ताबावा एक मुसलमान फ़कीर की दुआ से पैदा हुआ था और उस फ़कीर ने ही उसे पाला था। कांवावा के आईस मुख्य शिष्य 'बाईस शकीर' के नाम से मशहूर हुए । इनमें से एक रामदुलाल की बावत, जो कर्तावावा का उत्तराधिकारी हुआ, कहा जाता है कि उसके अन्दर उसी मुसलमान फ़कीर की रूह था गई थी। इस सम्प्रदाय के प्राचार्यों मे से अनेक हिन्दू हुए और अनेक मुसलमान । ये लोग केवल एक ईश्वर को मानते थे, गुरु को ईश्वर का अवतार मानते थे, दिन में पाँच बार गुरुमन्त्र का जाप करते थे, मांस मदिर से परहेज़ करते थे, शुक्रवार को पवित्र दिन मरनले थे और उसे धर्म चर्चा में व्यतील करते थे, जात पात, ऊँचनीच, हिन्दू, मुसलमान, ईसाई का उनमें कोई भेद न था, साल में कम से कम एक दो बार सम्प्रदाय के सब लोग एक साथ मिल कर भोजन करते थे, इत्यादि। बौद्ध ग्रन्थों में मुसलमान बङ्गाल में जिन दिनों बौद्धों के ऊपर शैवों के अत्याचार जारी थे, मालूम होता है, एक दरजे तक बौद्धों को मुसलमानों से सहायता, दिलासा और श्राश्रय मिला ! बङ्गाल के उस समय के बौद्ध ग्रन्थों, 'शून्य पुराण', 'धर्म पूजा पद्धति', 'धर्म गजन', 'बाद जननी', इत्यादि मे और बौद्ध गीतों में माह्मणों के प्रति क्रोध और बदले का भाव और मुसलमानों, मुसलिन विचारों और मुसलमान ग्रन्थों के प्रति प्रेम भरा हुआ है। उस समय के इन बौद्ध काव्यों से कुछ विचित्र बातों का पता चलता है । मसलन यह कि उस समय बङ्गाल लाने वाले बहुत से मुसलमान मांस से परहेज करते थे, एक जगह लिखा है-
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१६१
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१२९
मानव धर्म