पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१५७

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मानव धर्म

मानव धर्म और चरनदास की शिष्य थी। चरनदास ने मूर्तिपूजा का विरोध किया, गुरु की महिमा और भक्ति का उपदेश दिया। गरीबदास कबीर का अनुयायी था, उसके पद्यों में भी कारसी के शब्द और सूफी परिभाषाएं भरी हुई हैं। रामसनेही सम्प्रदाय का संस्थापक रामचरन भी मूर्तिपूजा का कट्टर विरोधी था। ये लोग भी दिन मे पाँच मरतबा प्रार्थना करते थे और हर जाति और हर मज़हब के लोगों को अपने में ले लेते थे। स्वामी नारायन सिह को कायम की हुई शिवनारायनी सम्प्रदाय में भी सब जाति और सब मज़हबों के लोग लिए जाते थे । जब कोई शिवनारायनी मरता था तो उसकी अन्तिम इच्छा के अनुसार उसके शरीर को दफन कर दिया जाता था.. या फेंक दिया जाता था और या दरिया में बहा दिया जाता था। मुग़ल सम्राट मोहम्मदशाह स्वामी नारायनसिंह का शिष्य था । मोहम्मदशाह की सहायता से यह सम्प्रदाय कुछ दिनों खूब फैली। पिछले दो तीन सौ साल के अन्दर इनमें से अनेक सम्प्रदायों के रूप मे श्राकाश पाताल का अन्तर पड़ गया और कहीं कहीं उनके अनुयाइयों का रहन सहन सम्प्रदाय के क़ायम करने वालों की इच्छा और उनके उपदेशों के ठीक विपरीत साँचे में ढल गया, फिर भी सम्राट मोहम्मदशाह का दस्तखती परवाना अभी तक शिवनारायनियों के मुख्य मठ बलिया जिले में मौजूद है। अठारवीं सदी मे सहजानन्द, दुलनदास, गुलाल, भीका और पल्टूदास के नाम काफ़ी मशहूर हैं। जगजीवन के शिष्य दुल नदास ने अपने पद्यों में मुसलमान, सूफ़ियों मनसूर, शम्श तबरेज़, निज़ामुद्दीन, हाफिज़, बूनली कलन्दर और फरीद